Sunday, October 24, 2010

हर इक पल का शायर - साहिर (Har Ik Pal Ka Shayar - Sahir)

मार्च ८, १९२१ में लुधियाना के एक ज़मींदार के घर अब्दुल हयी का जनम हुआ. उस समय किसी को पता नहीं था कि  यह नन्हा अब्दुल हयी एक दिन साहिर बनेगा, साहिर लुधयनवी!




साहिर का मतलब है जादूगर, साहिर सचमुच का जादूगर था, शब्दों का जादूगर.
  


साहिर यूँ तो ज़मींदार के घर पैदा हुए थे लेकिन उनका बचपन दुखों में गुज़रा क्योंकि उनके बचपन में ही उनके बाप और माँ आपसी रंजिशों की वजह से अलग हो गये थे. इसका असर साहिर पे बाहौत गहरा पड़ा और वो जवानी में क़दम रखते रखते बड़ी दिलशिकन शायरी करने लगे.




१. ये महलों ये तखतों ये ताजों की दुनिया - प्यासा   


कॉलेज में उनकी शायरी के चर्चे ज़ोरों-शॉरों से होने लगे और वो सबके चहीते शायर बन गये, ख़ास तौर पे लड़कियों के. कई बार इश्क़ हुआ, कई बार दिल टूटा...  


२. महफ़िल से उठ जानेवालों तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम - दूज का चाँद   



विभाजन के बाद साहिर लाहौर चले गये. वहाँ उन्हों ने कई अख़बारों और रिसालों के लिए लिखा लेकिन उनका दिल ना लगा और वो वापस हिन्दुस्तान आ गये और कुछ दिन दिल्ली रुक कर मुंबई चले गये और फिल्मों में गीत लिखना शुरू कर दिया. एक के बाद एक गीत हिट होते गये और साहिर का जादू लोगों पर चढ़ने लगा.


३. तुम अगर साथ देने का वादा करो मैं यूँही मस्त नगमे लुटाता रहूँ - हमराज़ 


  साहिर यूँही नगमे लुटाता रहा लेकिन साहिर का साथ किसी ने ना दिया! साहिर के घर महफिलें जमती दोस्त एहबाब आते सुर छिड़ता साज़ बचता शराब आती कबाब आते लेकिन साहिर अकेला रह जाता. दिल का दर्द दिल में लिए सुलगता रहा साहिर. साहिर तन्हा था तन्हा रहा....नगमे लुटाता रहा....पर्वत-पर्वत बस्ती-बस्ती गाता रहा...
  
४. पर्वत पर्वत बस्ती बस्ती गाता जाए बंजारा लेकर दिल का इकतारा - रेलवे प्लेटफार्म  



साहिर जो हर इक दिल में बस्ता था लेकिन तन्हा था, साहिर जो हर शख्स का चहीता था लेकिन जिसे चाहत ना मिली, साहिर जो हर इक पल का शायर था, २५ अक्तूबर, १९८० को ये कहता हुआ दुनिया से रुखसत हो गया.... 

५. मैं पल दो पल का शायर हूँ, पल दो पल मेरी कहानी है - कभी-कभी 



15 comments:

Patali-The-Village said...

साहिर लुधियानवी जी के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद|

Anita kumar said...

badhiya jaankaari

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

आपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी है.. लेकिन टाइपिंग की त्रुटियों के कारण व्यवधान पैदा होता है.. पोस्ट पब्लिश करने केक़बल जाँच लिया करें..

Qaseem Abbasi said...

कॉमेंट्स के लिए शुक्रिया!
टाइपिंग की त्रुटियों के लिए खेद है.
रात जल्दी में टाइपिंग की थी.
कुछ सुधार करने की कोशिश की है...हालाँकि अब भी नींद आ रही है.

Qaseem Abbasi said...

बहुत बहुत शुक्रिया, सुरिन्दर जी!

RAVINDRA said...

प्यारा लिखा है आपने....
प्रतीक्षारत........

संगीता पुरी said...

इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

Qaseem Abbasi said...

धन्यवाद!

Unknown said...

शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

एक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!

-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
E-mail : dplmeena@gmail.com
E-mail : plseeim4u@gmail.com
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http://baasindia.blogspot.com/

Qaseem Abbasi said...

अच्छा लगा कि आपको मेरी यह छोटी -सी कोशिश पसँद आई !

वीना श्रीवास्तव said...

साहिर साहब के बारे में कुछ भी कहना सूरज को रोशनी दिशाना है....हर दिल की, हर मौके की बात बहुत ही खूबसूरती के साथ कही है...क्या लिखा है...गजब..
आपका ब्लॉग फॉलो कर रही हूं...साहिर साहब की शायरी के नाम....

वीना श्रीवास्तव said...

आपका खाता भी खुल गया...

Qaseem Abbasi said...

सही कहा आपने वीना जी! साहिर के बारे में कितना भी लिखें कम है.
अपने विचार व्यक्त करने के लिए और ब्लॉग फॉलो करने के लिए धन्यवाद.

Arunkumar Deshmukh said...

Qaseem bhai,

Very few people know that Sahir took the takhallus of 'SAHIR' after listening to a sher,he heard on Radio,written by Dr.Allama Iqbal-
"Iss chaman mein honge paida
Bulbl-e-shiraaz bhi
Sainkado sahir bhi honge
saahib-e-eijaaz bhi".
-Arunkumar Deshmukh

Qaseem Abbasi said...

@Arunkumar Deshmukh, Thanks for enlightening!